बारिश की बुँदे
ये बारिश की बुँदे क्या गिरी
सारा समां बदल गया.
न चाहा था कभी ऐसा होगा
पर प्यार हो ही गया.
वो आये कुछ इस कदर हमारे पास
मानो किसी ने की हो साजिश बडे अरसो के बाद.
हमने कभी जिसे पसंद ही ना किया था वो दलदल ही
बन गया उन्हें हमारे बाहों में गिराने की वजह खास.
ये तुम्हारी नजरो से हमारी नज़ारे क्या मिली
घायल ही होगये पल भर के लिए.
यु तो अपनी तरफ खीचा ना था किसी ने पहेले
एक ही पल में बेगाने होगये हम अपने ही दिल से
गुलाबी होठो पे था पानी के बूंदों का बसेरा
कोई देना दे मेरे प्यासे लबो को नया सवेरा.
मिटटी की खुशबू थी या थी तेरे जिस्म की महक
रोम रोम में जगा रही थी अनोखी कसक
अपने ही दिल की डोली सजा रहे थे हम
बिन शहनाई के विदाई की रस्म निभा रहे थे हम.
तीखी नजरो से उन्होंने इशारा क्या कर दीया
संभल ना था उनको, और खुद को ही गिरा दीया.
कसके भर लिया उन्होंने हमे अपनी बाहों में
और हलके से चूम लिया हमारे गालो को
नजरो से तो पि ही रहे थे हम ,
होठो से भी पिला दीया ......
ना चाहा था कभी ऐसा होगा, पर प्यार हो ही गया ..................
:- जिगर पंड्या