jigar pandya
jigar pandya
jigar pandya
छेड़ती है हवाए मुझे आज कल,
किन खयालोमे खोये रहेते हो.
वक्त गुझरता रहता है मगर,
तुम कहा ठहर जाते हो?
खुद पर यकि करू या,
यकि करू उस खुदा पर.
कुछ रोज़ पहेले मिल आया हु मै,
साँस लेते हुवे ताज महल से ......
सामने वो होते है फिर भी,
दिलको मेरे याकि क्यों नहीं होता.
वो खुबसूरत है या उनका ख्याल,
दोनों मैं कोई फर्क क्यों नहीं होता।।।
रास्ता भूल चुके है आँखों मे उनकी,
दिल तक जाने का कोई मोड़ तो बता देना.
ए हवा, मुझसे पहेले मिल जाये जो तू उसे ,
तो हेल दिल रहो मैं उनकी बिछा देना.
उनकी मर्ज़ी अगर "ना" हुई तो,
वो ख़ुशी हमारी आखरी होगी.
अगर उनकी मर्ज़ी "हा" हुवी तो, ए हवा ,
हमारे दर्मिया तेरे लिए कोई जगह ना होगी.
जिगर पंड्या